Professional Conduct viniyam
भारत का राजपत्र
असाधरण
भाग - 2 अनुभाग 3क
सं0 27 खण्ड XVI
नई दिल्ली, शुक्रवार, 28 जून, 1985
(पृष्ठ क्रमांक 1 से 6)
भारत सरकार
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद्‌
भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी ( वृत्तिक आचरण और शिष्टाचार स्तर तथा आचार संहिता) विनियम, 1982 (15 मई, 1986 को यथाविद्यमान)

सा0का0नि0* - भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद्‌, भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद्‌ अधिनियम, 1970 (1970 का 48) की धारा 26 की उपधारा (1) और उपधारा (2) के साथ पठित धारा 36 खंड (ख) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से, भारतीय चिकित्सा के व्यवसायियों द्वारा अनुपालन किये जाने के लिए वृत्तिक आचरण और शिष्टाचार, स्तर तथा स्तर आचार संहिता अधिकथित करने के लिए निम्नलिखित विनियम बनाती है, अर्थातः-

भाग I

प्रारंभिक
  1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ -
    (i) इन विनियमों का संक्षिप्त नाम भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी (वृत्तिक आचरण और शिष्टाचार स्तर तथा आचार संहिता) विनियम, 1982 है,
    (ii) ये राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को प्रवृत्त होंगे ।
  2. परिभाषाऍ - (1) इन विनियमों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,
    (क) “अधिनियम” से भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद्‌ अधिनियम, 1970 (1970 का 48) अभिप्रेत है,
    (ख) “प्ररूप” से इन नियमों से संलग्न प्ररूप अभिप्रेत है,
    (ग) “भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी” से भारतीय चिकित्सा के वे चिकित्सक और शल्यचिकित्सक अभिप्रेत हैं जो तत्समय भारतीय चिकित्सा के किसी राज्य रजिस्टर में प्रविष्ट हैं और जिनके पास मान्यताप्राप्त आयुर्विज्ञान अर्हताओं में से कोई अर्हता है;
    (घ) “धारा” से अधिनियम की धारा अभिप्रेत है ।
    (2) उन शब्दों और पदों के जो इन विनियमों में प्रयुक्त है किन्तु परिभाषित नहीं हैं, वहीं अर्थ होंगे जो उनके अधिनियम में हैं ।
  3. घोषणा- भारतीय चिकित्सा का प्रत्येक व्यवसायी, इन विनियमों के प्रारम्भ होने की तारीख से 30 दिन की अवधि के भीतर और भारतीय चिकित्सा का प्रत्येक व्यवसायी जो इन विनियमों के प्रारम्भ होने के पश्चात्‌ अपने को रजिस्ट्रीकृत करा लेता है, ऐसे रजिस्ट्रीकरण के तीस दिन की अवधि के भीतर, राज्य परिषद्‌ या बोर्ड के रजिस्ट्रार के समक्ष प्ररूप “क” में घोषणा करेगा और उसका अनुपालन करने के लिए करार करेगा ।

भाग II

रोगियों और जनता के प्रति भारतीय चिकित्सा के व्यवसायियों का वृत्तिक आचरण और शिष्टाचार, कर्तव्य और बाध्यताएं
  1. भारतीय चिकित्सा के व्यवसायियों का चरित्र - चिकित्सा वृत्ति का मुखय उद्‌देश्य मानव की सेवा करना है । जो भी इस वृत्ति को चुनता है वह इसके आदर्शों के अनुरूप आचरण करने की बाध्यता को ग्रहण कर लेता है । भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी एक सच्चा व्यक्ति होगा जिसे निरोग करने की कला और विज्ञान में शिक्षण प्राप्त होगा । वह चरित्रवान रहेगा और रोगियों की देखभाल करने में परिश्रमी होगा । वह विनम्र, संयमी, धैर्यवान, बिना उत्तेजना के अपने कर्तव्य पालन में तत्पर तथा अपने जीवन के समस्त कार्यों में कर्तव्यपरायण होगा ।
  2. भारतीय चिकित्सा के व्यवसायियों के अपने रोगियों के प्रति कर्तव्य -
    (1) भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी मानवता और वृत्ति की उदात्त परम्पराओं की रक्षा के लिए आपातकाल में रोगियों के बुलावों का प्रतिचार करने के लिए तैयार रहेगा, भलेही वह उसकी सेवाओं की अपेक्षा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का उपचार करने के लिए आबद्ध न हो ।
    (2) वह रोगियों के प्रति अपने कर्तव्यों के मार्ग में धर्म, राष्ट्रियता, वंश, जाति और पंथ, दलगत राजनीति या सामाजिक प्रतिष्ठापरक विचारों को नहीं आने देगा ।
  3. चिकित्सा व्यवसायियों का उत्तरदायित्व - भारतीय चिकित्सा व्यवसायी अपनी देखरेख में रखे गए रोगियों का विश्वास अर्जित करेगा और प्रत्येक रोगी को पूर्ण सेवा और परायणता प्रदान करेगा तथा निरन्तर अपने ज्ञान एवं बुद्धि का विकास करने का प्रयत्न करेगा । वह अपनी वृत्तिक उपलब्धि के लाभ अपने रोगियों और सहयोगियों को उपलब्ध कराएगा । चिकित्सा-वृत्ति के सम्मानित आदर्शों का अभिप्राय यह है कि ऐसे चिकित्सा व्यवसायी का उत्तरदायित्व केवल व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं होगा, अपितु समाज के प्रति भी होगा ।
  4. धैर्य, सहानुभूति और गोपनीयता - धैर्य, और सहानुभूति भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी की विशेषता होगी । भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी के प्रति रोगियों द्वारा व्यक्त किए गए व्यक्तिगत या घरेलू जीवन से सम्बन्धित विश्वास तथा चिकित्सीय परिचर्या के समय देखे गए रोगियों के स्वभावगत या चरित्रगत दोष तब तक कदापि प्रकट नहीं किए जाएंगे जब तक विधि द्वारा उनका प्रकट किया जाना अपेक्षित न हो । तदपि कभी-कभी चिकित्सा व्यवसायी को यह अवधारित करना चाहिए कि क्या समाज के प्रति उसके कर्तव्य उससे यह अपेक्षा करते हैं कि वह किसी स्वस्थ व्यक्ति को किसी संचारी रोग से, जिसके प्रभाव में वह आने वाला है, बचाने के लिए, ऐसे चिकित्सा व्यवसायी के रूप में अपने प्रति विश्वासों के माध्यम से प्राप्त ज्ञान का प्रयोग करे । इस प्रकार की अवस्थाओं में, भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी ऐसा ही व्यवहार करेंगे जैसा कि वे इसी प्रकार की परिस्थितियों में अपने कुटुम्ब के किसी सदस्य के प्रति किसी अन्य व्यक्ति से व्यवहार की अपेक्षा करते हैं ।
  5. पूर्वानुमान - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी किसी रोगी की दशा की गम्भीरता को न तो बढ़ा-चढ़ा कर और न ही कम करके वर्णित करेगा तथा स्वयं को इस बाबत आश्वस्त करेगा कि रोगी, उसके सम्बन्धियों या जिम्मेदार मित्रों को रोगी की दशा की ऐसी जानकारी हो जिससे रोगी और उसके कुटुम्ब का पूर्ण हितसाधन हो।
  6. रोगी की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी उस रोगी का चयन करने के लिए स्वतंत्र होगा जिसकी वह सेवा करेगा । किन्तु किसी आपात स्थिति में उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए किए गए किसी भी अनुरोध के प्रति अथवा जब कभी मिताचारी लोकमत उसकी सेवाओं की अपेक्षा करता है तब वह उसका प्रतिचार करेगा । किसी रोगी को एक बार अपनी चिकित्सा के अधीन ले लेने पर, भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी रोगी की उपेक्षा नहीं करेगा और रोगी, उसके सम्बन्धियों या उसके जिम्मेदार मित्रों को पर्याप्त समयपूर्व सूचना दिए बिना वह रोगी से विलग नहीं होगा, जिससे कि वे किसी अन्य चिकित्सीय परिचारक का प्रबन्ध कर सकें । अनंतिम या पूर्ण रूप से रजिस्ट्रीकृत भारतीय चिकित्सा का कोई भी चिकित्सा व्यवसायी जानबूझकर ऐसा उपेक्षापूर्ण कार्य नहीं करेगा जो उसके रोगी या रोगियों को आवश्यक चिकित्सीय देख-रेख से वंचित करें ।
  7. वृत्ति के मान को बनाए रखना - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी अपनी वृत्ति की गरिमा और मान को बनाए रखेगा ।
  8. प्रसव कराने के लिए आबध्द - भारतीय चिकित्सा का कोई व्यवसायी किसी स्त्री की प्रसवावस्था के दौरान उसकी देखभाल करने के लिए सहमत होता है तो उसे ऐसा अवश्य करना चाहिए । किसी अन्य आबंध के कारण उस रोगी की देखभाल करने की असमर्थता तब तक मान्य नहीं है जब तक वह उसी प्रकार के अथवा किसी अन्य गंभीर मामले में पहले से ही आबद्ध न हो । जब कोई चिकित्सा व्यवसायी, जिसे किसी प्रसव के रोगी की देखभाल करने के लिए रखा गया है, अनुपस्थित है और उसके स्थान पर दूसरा चिकित्सक को बुलाया जाता है और वह प्रसव कार्य पूर्ण हो जाता है तो कार्यकारी चिकित्सा व्यवसायी अपनी वृत्तिक फीस लेने का हकदार है, किन्तु पूर्व आबद्ध चिकित्सा व्यवसायी के आ जाने पर रोगी को छोड़ने के लिए उसकी सम्मति प्राप्त करेगा ।
  9. नागरिक के रूप में चिकित्सा व्यवसायी - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी एक विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अच्छे नागरिक के रूप में वहां जहां वह निवास करता है, समुदाय के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सलाह देगा । वह समुदाय के नियमों को प्रवर्तित करने और उन संस्थाओं को, जो मानवता के हितों की संवृद्धि करती हैं, बनाए रखने में अपना समर्थन देगा । वह सफाई सम्बन्धी नियमों और विनियमों के क्रियान्वयन में समुचित प्राधिकारियों के साथ सहयोग करेगा ।
  10. लोक स्वास्थ्य - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी, जो विशेषतः लोक स्वास्थ्य के कार्य में संलग्न हो, महामारियों और संचारी रोगों की रोकथाम के सम्बन्ध में जनता को जानकारी देगा । स्वास्थ्य प्राधिकरणों की विधियों, नियमों और विनियमों के अनुसार, चिकित्सा व्यवसायी अपनी देखरेख के अधीन आए संचारी रोग के प्रत्येक रोगी की सूचना हर समय नियत लोक स्वास्थ्य प्राधिकारियों को देगा । जब कोई महामारी फैलती है तो वह अपने स्वयं के स्वास्थ्य के खतरे का ध्यान रखे बिना अपना परिश्रम जारी रखेगा ।

भाग III

एक चिकित्सा व्यवसायी का दूसरे चिकित्सा व्यवसायी के प्रति कर्तव्य
  1. चिकित्सा व्यवसायियों की एक दूसरे पर निर्भरता - ऐसा कोई नियम नहीं हैं कि भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी दूसरे चिकित्सा व्यवसायी से अपनी सेवाओं के लिए प्रभार नहीं लेगा, किन्तु कोई चिकित्सा व्यवसायी प्रसन्नतापूर्वक और बिना किसी प्रतिदान के अपनी वृत्तिक सेवाएं किसी अन्य चिकित्सा व्यवसायी या उसके आश्रितों को देगा यदि वे उसके पड़ोस में है ।
  2. व्यय के लिए प्रतिकर - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी सभी चिकित्सा व्यवसायियों और उनके निकटतम कौटुम्बिक आश्रितों को अपनी निःशुल्क सेवाएं प्रदान करने को सौभाग्य मानेगा । जब उसे किसी अन्य चिकित्सा व्यवसायी या उसके आश्रितों की देखभाल करने या उन्हें सलाह देने के लिए दूर से बुलाया जाता है तो यात्रा एवं अन्य आनुषंगिक व्ययों के लिए उसकी प्रतिपूर्ति की जाएगी ।
  3. परामर्श का प्रोत्साहित किया जाना - गंभीर रूग्णावस्था में, विशेषतः संशयपूर्ण अथवा कठिन अवस्थाओं में, चिकित्सा व्यवसायी परामर्श का अनुरोध कर सकता है ।
  4. रोगी के हित के लिए परामर्श - प्रत्येक परामर्श में रोगी के हित का सर्वप्रथम महत्व है । रोगी में अभिरूचि रखने वाले सभी चिकित्सा व्यवसायी रोगी, उसके कुटुम्ब के किसी सदस्य या जिम्मेदार मित्र के प्रति निष्कपट रहेंगे ।
  5. परामर्श में समय की पाबन्दी - परामर्श के लिए मिलने हेतु भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी द्वारा समय की पाबन्दी पर अत्यधिक ध्यान दिया जाएगा ।
  6. परामर्श में आचरण - परामर्शों में वह कपट, प्रतिस्पर्धा या ईर्ष्या में लिप्त नहीं होगा । रोगी के प्रभारी चिकित्सा व्यवसायियों को सभी सम्यक्‌ सम्मान दिया जाएगा और ऐसा कोई कथन या टिप्पणी नहीं की जाएगी जो उसमें निहित विश्वास को कम करे । इस प्रयोजन के लिए, रोगी अथवा उसके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में कोई विचार-विमर्श नहीं किया जाएगा ।
  7. परामर्श के पश्चात्‌ रोगी का विवरण -
    (1) रोगी या उसके प्रतिनिधियों को मामले के सभी विवरण, अन्यथा हुई सहमति के सिवाय, सभी परामर्शी चिकित्सा व्यवसायियों की उपस्थिति में दिए जाएंगें; रोगी अथवा उसके सम्बन्धियों या मित्रों पर अभिमत का प्रकट किया जाना आरंभ में रोगी की देखभाल करने वाले चिकित्सा व्यवसायी पर निर्भर करेगा ।
    (2) रायभेद को अनावश्यक रूप से प्रकट नहीं किया जाएगा, किन्तु जब कोई अशाम्य रायभेद हो तो परिस्थितियों स्पष्टतया एवं निष्पक्ष रूप से रोगी अथवा उसके सम्बन्धियों या मित्रों को स्पष्ट कर दी जाएंगी । उन्हें इस बात की स्वतंत्रता होगी कि यदि वे चाहें तो आगे सलाह ले लेंवें ।
  8. परामर्श के पश्चात्‌ उपचार - कोई भी निर्णय देखभाल करने वाले भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी को उपचार में ऐसे पश्चात्‌वर्ती परिवर्तन करने से नहीं रोकेगा, जो किन्हीं भी अप्रत्याशित परिवर्तनों के कारण अपेक्षित हों, किन्तु अगामी परामर्श के समय परिवर्तनों के कारण बतलाए जाएंगे । वही विशेषाधिकार, उसकी बाध्यताओं सहित उस परामर्शदाता का होता है जब उसे देखभाल करने वाले भारतीय चिकित्सा के व्यवसायी की अनुपस्थिति के दौरान किसी आपात अवस्था में बुलाया जाता है । देखभाल करने वाला चिकित्सा व्यसायी रोगी के लिए किसी भी समय औषधि निर्देश कर सकता है, किन्तु परामर्शदाता केवल आपात की दशा में ।
  9. अन्य चिकित्सा व्यवसायी के रोगियों का निरीक्षण - किसी रोगी को, जो हाल ही में उसी रूग्णता के लिए अन्य चिकित्सा व्यवसायी की देखरेख में रहा है, देखने के लिए बुलाया गया भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी ऐसे रोगी को आपात की दशा के सिवाय, जब वह पूर्व चिकित्सा व्यवसायी को वे परिस्थितियां जिनके अधीन रोगी को देखा गया और उसका उपचार किया गया, स्पष्ट करते हुए संसूचित करेगा, अथवा जब चिकित्सा व्यवसायी ने अपना रोगी छोड़ दिया हो, अथवा जब रोगी ने उस चिकित्सा व्यवसायी को अपनी सेवाएं समाप्त करने लिए सूचित कर दिया हो, अथवा जब तक कि रोगी विनिर्दिष्ट रूप से अपने मूल चिकित्सा व्यवसायी के पास वापस जाने के लिए मना नहीं कर देता है, न तो अपने भारसाधन में लेगा और न उसके लिए औषधि निर्देश करेगा । जब किसी रूग्णता या क्षति को देखना और उसकी रिपोर्ट देना, शासकीय स्थिति धारण करने वाले चिकित्सा व्यवसायी क कर्तव्य हो जाता है तो वह रोगी की देखभाल करने वाले चिकित्सा व्यवसायी को उपस्थित होने का विकल्प प्रदान करने वाली सूचना, देगा । ऐसा चिकित्सा व्यवसायी निदान या उपचार की बाबत, जो अपनाया गया है, टिप्पणी नहीं करेगा ।
  10. विशेषज्ञों को प्रेषित रोगी - जब कोई रोगी देखभाल कर रहे चिकित्सा व्यवसायी के द्वारा किसी विशेषज्ञ के पास भेजा जाता है तो रोगी का विवरण विशेषज्ञ को दिया जाएगा, जो लिखित रूप में अपना अभिमत बंद लिफाफे में सीधे देखभाल कर रहे चिकित्सा व्यवसायी को भेजेगा ।

भाग IV

आचार संहिता
  1. विज्ञापन - भारतीय चिकित्सा के किसी चिकित्सा व्यवसायी द्वारा या तो वैयक्तिक रूप से या समाचार-पत्र में विज्ञापन द्वारा, प्लेकार्डों द्वारा या परिपत्रों या हैंडबिलों के वितरण द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोगियों से अनुनय करना अनैतिक है । चिकित्सा व्यवसायी विज्ञापन या प्रचार के किसी भी रूप में या रीति से अपना या अपने नाम और/या फोटो का उपयोग नहीं करेगा या उपयोग करने में सहायता नहीं देगा या दूसरों को उपयोग नहीं करने देगा ।
  2. अर्हता नामावली - भारतीय चिकित्सा के चिकित्सा व्यवसायी को अपने नाम के पूर्व या पश्चात्‌ अपनी सही उपाधि या डिप्लोमा लगाना अनिवार्य होगा ।
  3. पता परिवर्तन और तत्संबंधी घोषणा - भारतीय चिकित्सा के प्रत्येक व्यवसायी द्वारा अपने पते में परिवर्तन की सूचना सम्बन्धित राज्य बोर्ड या परिषद्‌ तथा केन्द्रीय परिषद्‌ को दी जाएगी । चिकित्सा व्यवसायी एक या अधिक समाचार-पत्रों में एक बार प्रेस को निम्नलिखित के विषय में औपचारिक घोषणा जारी कर सकता है,-
    (क) चिकित्सा व्यवसाय आरम्भ करने पर;
    (ख) चिकित्सा व्यवसाय के प्रकार के परिवर्तन पर;
    (ग) पता परिवर्तन होने पर;
    (घ) कार्य से अस्थायी अनुपस्थिति होने पर;
    (ड.) चिकित्सा व्यवसाय फिर से चालू करने पर; (च) अन्य चिकित्सा व्यवसाय में स्थान लेने पर ।
  4. वृत्तिक सेवाओं के लिए संदाय - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी “रोगमुक्ति नहीं तो संदाय नहीं” की संविदा नहीं करेगा ।
  5. रिबेट और कमीशन - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी किसी रोगी के चिकित्सीय, शल्यचिकित्सीय या अन्य उपचार के लिए निर्देशित करने, सिफारिश करने या उपाप्त करने के प्रतिफल-स्वरूप या उसके बदले में कोई उपहार, उपदान, कमीशन या बोनस नहीं देगा, उसकी याचना नहीं करेगा, या उसे प्राप्त नहीं करेगा और न ही देने का प्रस्ताव करेगा, न याचना करेगा या प्राप्त नहीं करेगा । वह प्रत्यक्ष रूप से या किसी बहाने से, चिकित्सीय, शल्यचिकित्सीय या अन्य उपचार के लिए किसी फीस के विभाजन, हस्तान्तरण, समनुदेशन, अधीनस्थ करने, उस पर रिबेट लेने देने, उसका हिस्सा-बांट करने या उसकी वापसी के कार्य में भाग नहीं लेगा या उसमें पक्षकार नहीं बनेगा ।
  6. विधिक निर्बन्धन का अपवंचन - भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी चिकित्सा व्यवसाय के विनियमन में देश की विधियों का पालन करेगा और अन्य व्यक्तियों को ऐसी विधियों की अपवंचना करने में सहायता नहीं देगा ।
  7. वृत्तिक प्रमाण-पत्र, रिपोर्टें और अन्य दस्तावेजें -
    (1) भारतीय चिकित्सा का रजिस्ट्रीकृत व्यवसायी न्याय के क्रम में अथवा प्रशासनिक प्रयोजनों के लिए पश्चात्‌वर्ती उपयोगार्थ अपनी वृत्तिक हैसियत में अपने द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण-पत्र, अधिसूचानाएं, रिपोर्टें या इसी प्रकार की दस्तावेजें देने के लिए कुछ मामलों में विधि द्वारा आबद्ध है या उनकी उसे समय-समय पर मांग की जा सकती है या अनुरोध किया जा सकता है ।
    (2) ऐसी दस्तावेजों में अन्य प्रमाण-पत्रों या रिपोर्टों के साथ-साथ निम्नलिखित सम्मिलित है :- (क) जन्म, मृत्यु अथवा मृतकों की अन्त्येष्टि से संबंधित अधिनियमों के अधीन;
    (ख) पागलपन और मानसिक कमी से संबंधित अधिनियमों और उनके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन;
    (ग) टीका अधिनियमों और उनके अधीन बनाए गए विनियमों के अधीन;
    (घ) कारखाना अधिनियमों और उनके अधीन बनाए गए विनियमों के अधीन;
    (ड.) शिक्षा अधिनियमों के अधीन;
    (च) लोक स्वास्थ्य अधिनियमों और उनके अधीन किए गए आदेशों के अधीन;
    (छ) कर्मकार प्रतिकर अधिनियम के अधीन;
    (ज) संक्रामक रोगों की अधिसूचना से संबंधित अधिनियमों और आदेशों के अधीन;
    (झ) कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अधीन;
    (ञ) रोगी प्रसुविधा बीमा एवं मंत्री सोसाइटियों के संबंध में;
    (त) वाणिज्य पोतपरिवहन अधिनियम के अधीन;
    (थ) पासपोर्ट जारी कराने के लिए;
    (द) न्यायालयों, लोक सेवाओ, लोक कार्यालयों अथवा साधारण नियोजनों में उपस्थित की बाबत माफी देने के लिए;
    (ध) ग्रामीण और सैनिक विषयों के संबंध में;
    (न) पेंशन मंत्रालय के नियंत्रणाधीन विषयों के संबंध में ।
    (3) भारतीय चिकित्सा को कोई व्यवसायी जिसके बारे में यह दर्शित कर दिया जाएगा कि उसने इस प्रकार के प्रमाण-पत्र, अधिसूचना, रिपोर्ट अथवा ऐसी ही दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं अथवा अपने नाम और प्राधिकार के अधीन दी है जो कि असत्य, भ्रामक अथवा अनुचित है, अधिनियम के अधीन या ऐसे चिकित्सा व्यवसायी के रजिस्ट्रीकरण का विनियमन करने वाली किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन, भारतीय चिकित्सा के केन्द्रीय रजिस्टर में से अपना नाम निकलवाने हेतु वृत्तिक अवचार या अनुशासनिक कार्रवाई के दायित्वाधीन होगा, तथा धारा 27 का उपबन्ध लागू होगा ।
  8. चिकित्सा व्यवसायी द्वारा जारी किए गए चिकित्सीय प्रमाण-पत्रों का रजिस्टर- भारतीय चिकित्सा का व्यवसायी चिकित्सीय प्रमाण-पत्रों का एक रजिस्टर रखेगा, जिसमें जारी किए गए प्रमाण-पत्रों का पूर्ण विवरण दिया जाएगा । चिकित्सीय प्रमाण-पत्र जारी करते समय वह सदैव रोगी के पहचान चिन्हों की प्रवष्टि करेगा और प्रमाण-पत्रों की प्रतिलिपि रखेगा । वह चिकित्सीय प्रमाण-पत्रों और अपने द्वारा रखी गई प्रतिलिपियों पर रोगी के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान, पता और पहचान चिन्हों लेना नहीं भूलेगा ।

भाग V

अनुशासनिक कार्रवाई
  1. (1) केन्द्रीय परिषद्‌ भारतीय चिकित्सा व्यवसायियों की जानकारी में उन अपराधों की, जो वृत्तिक अवचार गठित करते हैं, निम्न सूची लाना चाहती है और अधिनियम के अधीन अथवा किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त ऐसे चिकित्सा व्यवसायियों का रजिस्ट्रीकरण विनियमित करने वाली किसी विधि के अधीन, उनके विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई प्राधिकृत कर सकती है ।

  2. सूची
    (i) रोगी के साथ जारकर्म या अनुचित आचरण अथवा साहचर्य- भारतीय चिकित्सा का कोई व्यवसायी जो, किसी रोगी के साथ कोई जारकर्म या अनुचित आचरण करके अथवा रोगी के साथ अनुचित साहचर्य बनाए रख कर अपनी वृत्तिक हैसियत का दुरूपयोग करता है, अधिनियम के अधीन अथवा किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त, ऐसे चिकित्सा व्यवसायियों का रजिस्ट्रीकरण विनियमित करने वाली किसी विधि के अधीन अनुशासनिक कार्रवाई के दायित्वाधीन है ।
    (ii) नैतिक अधमता अन्तर्वलित करने वाले कोई अपराध ।
    (iii) यदि औषधीय और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों के अधीन सिद्धदोष ठहराया गया है ।
    (iv) यदि अपनी स्वयं की अर्हता की आड़ में और, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबन्ध के अनुसार, अनुसूचित विष अपने रोगियों के अतिरिक्त जनता को बेचने के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है ।
    (v) गर्भपात अथवा कोई अवैध शल्यक्रिया, जिसके लिए कोई चिकित्सीय, शल्यचिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक लक्षण नहीं है, करना या करने में किसी अनर्हित व्यक्ति को समर्थ बनाना ।
    (vi) भारतीय चिकित्सा व्यवसायी अनर्हित या अचिकित्सीय व्यक्ति को भारतीय चिकित्सा में दक्षता के प्रमाण-पत्र नहीं देगा । टिप्पणी - पूर्वोक्त इस प्रकार से लागू नहीं होता है कि उससे वास्तविक छात्रों, चिकित्सा व्यवसायियों के वैध कर्मचारियों, धात्रियों, औषध वितरकों, शल्यचिकित्सा परिचारकों अथवा कुशल यांत्रिक और तकनीकी सहायकों का चिकित्सा व्यवसायियों के व्यक्तिगत पर्यवेक्षण के अधीन समुचित प्रशिक्षण और शिक्षण देना निर्बन्धित हो ।
    (vii) भारतीय चिकित्सा के किसी व्यवसायी के लिए असाधारण रूप से विशाल नामपट्‌ट (साइन बोर्ड) का प्रयोग करना और उस पर अपने नाम, विश्वविद्यालय अथवा किसी कानूनी निकाय से प्राप्त अर्हताओं, उपाधियों और अपने विशिष्ट विषय के नाम से भिन्न कुछ भी लिखना अनुचित है । उसके औषध व्यवस्थापत्रों (नुस्खों) पर भी वही होना चाहिए । किसी औषध विक्रेता की दुकान पर अथवा ऐसे स्थानों में जहां वह निवास नहीं करता है अथवा कार्य नहीं करता है, नामपट्‌ट लगाना अनुचित है ।
    (viii) किसी रोगी की गुप्त बातों को, जो अपनी वृत्ति के संचालन में ज्ञात हुई हों, प्रकट मत करो । उन्हें केवल न्यायालय में पीठासीन न्यायाधीश के आदेशों के अधीन प्रकट किया जा सकता है ।
    (ix) जबकि चिकित्सा लक्षण विद्यमान है, बन्ध्यताकरण, जन्म नियंत्रण, जीवित बालकों पर कपाल छेदन और चिकित्सीय गर्भस्त्राव करनें में सहायता करने से केवल धार्मिक आधारों पर इंकार करना; जब तक कि भारतीय चिकित्सा व्यवसायी ऐसा करने में स्वयं को अक्षम अनुभव न करे ।
    (x) शल्यक्रिया करने से पूर्व यथास्थिति, परि या पत्नी से, अवयस्क की दशा में, उसके माता-पिता या संरक्षक से अथवा स्वयं रोगी से लिखित सम्मति प्राप्त की जाएगी । ऐसी शल्यक्रिया में, जिसके परिणामस्वरूप बंध्यता हो सकती है, पति और पत्नी दोनों की सम्मति आवश्यक है ।
    (xi) रोगियों के फोटोचित्र या केस रिपोर्ट किसी चिकित्सीय या अन्य पत्रिका में, उनकी अनुज्ञा के बिना, इस प्रकार से प्रकाशित नहीं की जाएंगी जिनसे उनकी पहचान प्राप्त हो जाए । यदि पहचान प्रकट न हो तो उसकी सम्मति आवश्यक नहीं है ।
    (xii) यदि भारतीय चिकित्सा का कोई व्यवसायी कोई परिचर्यागृह (नर्सिंग होम) चला रहा है और वह अपनी सहायता के लिए सहायक नियुक्त करता है तो अंततः उत्तरदायित्व ऐसे चिकित्सा व्यवसायी पर ही आता है ।
    (xiii) भारतीय चिकित्सा का कोई भी व्यवसायी फीस मान का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं करेगा । किन्तु चिकित्सा व्यवसायी के परामर्श या प्रतीक्षा कक्ष में उसके लिए लगाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है ।
    (xiv) भारतीय चिकित्सा का कोई भी चिकित्सा व्यवसायी रोगियों को जुटान के लिए दलालों या अभिकर्ताओं का उपयोग नहीं करेगा ।
    (xv) विज्ञापन-पट्‌टों और यात्राा कार्यक्रमों के माध्यम से विज्ञापन करना अनैतिक होगा ।
    (2) समुचित प्राधिकरण, अर्थात राज्य बोर्ड या राज्य परिषद्‌ भारतीय चिकित्सा के किसी ऐसे व्यवसायी को, जो किसी विनिर्दिष्ट अपराध का सिद्धदोष ठहराया गया है या जो ऐसी जांच के पश्चात्‌ जिसमें उसे स्वयं या किसी वकील के माध्यम से सुने जाने का अवसर दिया गया है, किसी वृत्तिक पहलू की बाबत वृत्तिक अवचार या गर्हित आचरण का दोषी पाया गया है, चेतावनी पत्र जारी कर सकता है या रजिस्टर में से उसका नाम पूर्णता या किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए निकाले जाने का निर्देश दे सकता है, और धारा 27 के उपबन्ध लागू होंगे ।

    प्ररूप क
    ( विनियम 3 देखिए )
    घोषणा-पत्र का प्ररूप

    1. घोषणा - राज्य चिकित्सा परिषद्‌ या बोर्ड भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद में रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति अपने आवेदन-पत्र के साथ, अपने द्वारा हस्ताक्षरित निम्नलिखित घोषणा भेजेंगे, अर्थात्‌:-
    (1) मैं मानवता की सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित करने की सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं ।
    (2) धमकी के होने पर भी, मैं मानवता के नियमों के प्रतिकूल अपने ज्ञान का उपयोग नहीं करूंगा ।
    (3) मैं गर्भ धारण के समय से ही मानव जीवन के प्रति परम आदर रखुंगा ।
    (4) मैं अपने कर्तव्य और अपने रोगी के बीच, धर्म, राष्ट्रियता, वंश, दलगत राजनीति या सामाजिक प्रतिष्ठा की बात को नहीं आने दूंगा ।
    (5) मैं अपनी वृत्ति का व्यवसाय विवेक एवं गरिमा के साथ करूंगा ।
    (6) अपने रोगी का स्वास्थ्य ही मेरा सर्वप्रथम चिन्तन होगा ।
    (7) मैं उन गोपनीय बातों का आदर करूंगा जो मुझे बतलाई जाती है ।
    (8) मैं अपने गुरूजनों को सम्मान दूंगा और कृतज्ञता ज्ञापन करूंगा जिसके कि वे पात्र है ।
    (9) मैं अपनी भरपूर शक्ति पर्यन्त चिकित्सा वृत्ति की मर्यादा और उदात्त परम्परा को बनाए रखूंगा ।
    (10) मैं अपने सहयोगियों के साथ भ्रातृवत्‌ व्यवहार करूंगा ।
    (11) मै इन विनियमों में अधिकथित वृत्तिक आचरण और शिष्टाचार के स्तरों को बनाए रखूंगा और आचार संहिता का पालन करूंगा ।
    मैं सत्यनिष्ठा से, स्वतंत्रतापूर्वक और ईमानदारी से यह घोषणा करता हूं और उसका पालन करने का करार करता हूं ।
 

 

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आवेदक के हस्ताक्षर
 
पूरा नाम ............................................
तारीख................................................
पता  ................................................
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गोकुल प्रसाद जैन,
अपर विधायी परामर्शी, भारत सरकार ।